Wednesday 31 May 2023

The Irony's Reign: A Dictator's Delusion

 In a land of irony, where dreams were once bright,

Resides a leader, oh what a sight!

With his throne so grand, he rules with might,

While the people's suffering is hidden from his sight.

 

Behold, dear citizens, the PM so wise,

Wearing a façade, A dictator in disguise.

He claims to serve, but oh, what a shame,

His actions only bring the nation to flame.

 

Religion, the tool, he skilfully wields,

Dividing the masses with invisible shields.

As riots engulf the state, the PM turns a blind eye,

In his kingdom of chaos, truth begins to die.

 

The players take to streets, protesting with might,

But the government's force suppresses their fight.

Their voices muffled, their rights denied,

While the PM, indifferent, lets their dreams slide.

 

Inflation soars high, as prices touch the sky,

The common man's struggle, ignored with a sigh.

Unemployment rampant, hope fades away,

Yet the PM's attention drifts, never to stay.

 

Media, a puppet, dances to his tune,

Spreading propaganda, like a poisonous bloom.

Fake news engulfs, truth takes a backseat,

As the PM's reign tightens, deceit after deceit.

 

Oh, the PM, so self-obsessed and vain,

Inaugurating buildings, oh what a drain!

Tax-payers' money wasted, a never-ending spree,

While the nation crumbles, in despair we plea.

 

A king he fancies himself, above all else,

The sufferings of the people, he simply repels.

For the common man's plea, he has no ear,

In his kingdom of illusion, reality is smeared.

 

Oh, land of irony, where justice cries,

The PM's reign, a tale of twisted lies.

But fear not, dear citizens, the day will come,

When truth shall prevail, and justice will hum.

Sunday 7 August 2016

शायरी ३

तेरी खूबसूरती की तारीफ क्या करूँ
के बस इतना कहना हैं,
जब भी तुम्हे देखता हूँ मुझे फिर से प्यार हो जाता हैं...
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होने से तेरे थी सूखे पत्तो में भी महक
आज गुलाब में सिर्फ कांटे ही दिखते हैं...
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कुछ पल तो भीग लूं बारिश में
आंसुओ में भीगते तो अरसा हो गया
तुम तो कभी ख्वाबो में भी न मिले हमसे
फिर भी मशहूर मेरे इश्क का चर्चा हो गया...
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हम तो देवदास बन ही चुके हैं
अब तू पारो बन जा वर्ना
भाग चंद्रमुखी के खुल जायेंगे...
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तुमसे चाहत थी या खुद से फरेब था
अब हम उजालो को छोड़कर अंधेरो से गुफ्तगू करते हैं...
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बात करके जैसे कोई एहसान करते हो
अगर करते भी हो तो रोज़ कर दिया करो...
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हर तरफ असहिष्णुता की बात हो रही है
तो फिर तेरी यादे मेरे लिए क्या है...
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हम भी शायद अजनबी होते
गर होते तो फिर मतलबी होते...
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जो खुदा लिख भी देता अगर तुझे
मेरी इन हाथो की लकीरों में अगर,
मुमकिन हैं माज़ूर-ए-तासीर कुछ हमारी होती...
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ख्वाहिशे बेकाबू हैं, चेहरे पर चमक कुछ बढ़ सी गयी हैं,
ये दर्द-ए-सैलाब के पहले की ख़ुशी तो नहीं
मोहब्बत तो पहले भी हुई थी, लेकिन इस बार कशिश कुछ ज्यादा हैं,
कहीं तू हद्द से भी ज्यादा खुबसूरत तो नहीं...
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Saturday 21 November 2015

शायरी २ ...

गम ये हैं की तुझसे मिलना ही क्यों हुआ
ख़ुशी इस बात की है कि तुझसे मिलना हुआ...

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तेरी यादो का मयखाने से रिश्ता कुछ समझ नहीं आता
दिन तो जैसे तैसे गुज़र जाते हैं
शाम होते ही दोनों नज़र आते हैं...

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ये सर्द कोहरा तो चला जाएगा
सीने की धुंध कब मिटेगी
कब सामने आएगी तू...

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हादसों की आदत नहीं है मुझे
एक तुझसे मिलना हुआ फिर कभी उभर ही नहीं पाए

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पूछा किसी ने क्यों जुदा हो दुनिया से
नादां दिल धड़का एक तेरे नाम से
खामोश लब समझदार थे लेकिन, कहा 
अच्छी मेरी गुमनामी, न की होने तेरे बदनाम से...

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शराब होती तो शायद संभल जाते
पर अब तक लड़खड़ा रहे हैं, ये जो नशा तेरा हुआ...

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तेरी यादो के समंदर में तैरते जा रहा हूँ
साहिलों की तलाश से बेपरवाही कर ली जो मैंने...

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तुझसे मिलना हुआ तो शायर हुए
वरना नाकामी किसे पसंद हैं...

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कागज़ की कश्ती थी फिर भी बैठ गए उसपे
किसी ने कह जो दिया था कि उस पार तू खड़ी हैं...
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Wednesday 18 November 2015

शायरी...

तेरे प्यार के दलदल में फसता जा रहा हूँ,
न कोई बचाने वाला है,
ना ही मैं बचाने के लिए आवाज़ लगा रहा हूँ |

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जो तुम सामने नहीं हो तो लगता है
आँखे कुछ बेरोजगार सी है|

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न कर सावन का इंतज़ार...
भीगाकर ये सुखा ख़त्म कर दे,
मुझे अपनी मोहब्बत से तरबतर कर दे,
आ, और मेरे इस मकान को अब घर कर दे...

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अपनी दोस्ती ही अच्छी थी पर
मुझे तुमसे मोहब्बत है,
ये तुम जान गयी और फिर मेरी जान गयी|
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मोहब्बत न हुई गुनाह हो गया,
करके तुमसे मैं तबाह हो गया,
कोशिशे लाख की संभलने की,
पर देखा तुम्हे तो इश्क बेपनाह हो गया|

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सर्दियां तो अभी शुरू होंगी लेकिन
तेरी यादो का कोहरा तो सालो से है...

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हमेशा ख़ामोशी ठीक नहीं है,
शोर भी कभी कभी सुकून देता है...

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मैं भी यही हूँ तू भी यही है,
किरदार कुछ नए पर कहानी वही है,
कि होके भी यहाँ तू मेरी नहीं है...

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क्या मुकाबला करेंगे उस मजनूं या रांझा का,
हमे तो प्यार में एक थप्पड़ भी नसीब नहीं हुआ...

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झुकी नजरो से ही सही, बस जरा देख ले उन्हें
तो होता है हंगामा,
और वो नाज़नीं अपने हुस्न से 
लाखो क़त्ल करके भी गुमनाम है...

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आखिर क्यों मैं बात करूँ?
करूँ भी तो किससे करूँ?
कोई मिला भी तो क्या करूँ?
क्या करूँ वो तो पता है...बात तेरी ही होगी...
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Thursday 8 October 2015

आशा...

बन जा वो किताब, जिसको पढ़ सकूँ
बन जा एक ख्वाब, जिसको देख लूँ

बन जा एक नदी, कि तुझमे तैर लूँ
बन जा वो सदी, जो अमर मै करूँ

बन जा वो सहर, जो रौशनी दे मुझे
बन जा लहर, जिसे महसूस कर सकूँ

बन जा मेरा जीवन, ज़रा सा जी लूँ जिसे 
बन जा घटा-सावन, मै भी भीग लूँ

बन जा कोई गीत, मै गुनगुना सकूँ
बन जा मेरी मीत, कुछ गम भुना सकूँ

बन जा वो चाँद, जिसका दाग मै बनूँ
बन जा मेरा उन्मांद, जिससे जाग न सकूँ

बन जा कोई राह, जिस पर चल सकूँ
बन जा मेरी पनाह, फिर न जल सकूँ

बन जा वो आवाज़, जिसको सुनता रहूँ
बन जा अलफ़ाज़, तो मै लिखता रहूँ


Monday 13 July 2015

कोशिश...

एक कोशिश और हुई
एहसास तुम्हे बताने की
शिद्दत कभी कम न हुई थी 
पर हिम्मत न हुई जताने की

कुछ साँसों को अन्दर खींचा
छेड़ी जो बात दिल की तुमसे
जुबां कुछ लड़खड़ा रही थी
जगह भी न थी धडकनों को समाने की

वो कानो से दिल में उतरी फिर
आवाज़ तेरी, एक आग बुझी अल्फाजों से  
सोचा बस रुक जाये ये वक़्त यही
जिस पल ख़त्म किश्त हुई, वीराने की

चाहा तुम्हे दिल के आखिरी छोर से
पर तुम बने किस्मत किसी और के
खुश तो फिर भी हूँ तेरी ख़ुशी से
बात कुछ और ही होती तुम्हे अपना बनाने की

एक तेरी ‘हां’ न हुई
एक मैंने ‘ना’ न कहा
एक तेरी जरुरत है शायद
दिल को दिमाग को, बस तेरी, न ज़माने की

समझाना चाहा समझा न सका
या तू न समझी या मै न समझा
मोहब्बत मेरी मजबूरी तेरी
एक कोशिश फिर होगी समझाने की...



Saturday 16 May 2015

एक वक़्त...

एक वक़्त तुझे पाने में गया,
एक वक़्त तुझे भुलाने में गया,
एक वक़्त तू साथ थी मेरे,
एक वक़्त वीराने में गया|

एक वक़्त कभी हंसाते थे तुझे,
एक वक़्त तरस खुद मुस्कुराने को गया,
एक वक़्त नशा तेरा था मुझे,
एक वक़्त महफ़िल-ए-मयखाने में गया|

एक वक़्त तेरी बाते सुनते थे बहुत,
एक वक़्त सन्नाटे में गया,
एक वक़्त तेरी बाते औरो से करते थे,
एक वक़्त खुद को सबसे छुपाने में गया|

एक वक़्त थी सब खबर मुझे,
एक वक़्त खो ज़माने में गया,
एक वक़्त ख्वाबो में थी तू,
एक वक़्त यादो के सताने में गया|

एक वक़्त थी तन से रूह तक,
एक वक़्त दिल दिमाग से लड़ जाने में गया,
एक वक़्त थी मोहब्बत तुझसे,
एक वक़्त खुद को आजमाने में गया|

एक वक़्त यकीन कि तू आएगी,
एक वक़्त लौट जाने में गया,
एक वक़्त इबादत थी तू, और
एक वक़्त मुल्हिद कहलाने में गया|