एक कोशिश और हुई
एहसास तुम्हे बताने की
शिद्दत कभी कम न हुई थी
पर हिम्मत न हुई जताने की
कुछ साँसों को अन्दर खींचा
छेड़ी जो बात दिल की तुमसे
जुबां कुछ लड़खड़ा रही थी
जगह भी न थी धडकनों को
समाने की
वो कानो से दिल में उतरी फिर
आवाज़ तेरी, एक आग बुझी अल्फाजों से
सोचा बस रुक जाये ये वक़्त
यही
जिस पल ख़त्म किश्त हुई, वीराने की
चाहा तुम्हे दिल के आखिरी
छोर से
पर तुम बने किस्मत किसी और
के
खुश तो फिर भी हूँ तेरी
ख़ुशी से
बात कुछ और ही होती तुम्हे
अपना बनाने की
एक तेरी ‘हां’ न हुई
एक मैंने ‘ना’ न कहा
एक तेरी जरुरत है शायद
दिल को दिमाग को, बस तेरी, न ज़माने की
समझाना चाहा समझा न सका
या तू न समझी या मै न समझा
मोहब्बत मेरी मजबूरी तेरी
एक कोशिश फिर होगी समझाने
की...