तेरे
प्यार के दलदल में फसता जा रहा हूँ,
न कोई बचाने वाला है,
न कोई बचाने वाला है,
ना
ही मैं बचाने के लिए आवाज़ लगा रहा हूँ |
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जो
तुम सामने नहीं हो तो लगता है
आँखे कुछ बेरोजगार सी है|
आँखे कुछ बेरोजगार सी है|
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न
कर सावन का इंतज़ार...
भीगाकर
ये सुखा ख़त्म कर दे,
मुझे
अपनी मोहब्बत से तरबतर कर दे,
आ,
और मेरे इस मकान को अब घर कर दे...
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अपनी
दोस्ती ही अच्छी थी पर
मुझे
तुमसे मोहब्बत है,
ये तुम जान गयी और फिर मेरी जान गयी|
ये तुम जान गयी और फिर मेरी जान गयी|
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मोहब्बत
न हुई गुनाह हो गया,
करके तुमसे मैं तबाह हो गया,
कोशिशे
लाख की संभलने की,
पर
देखा तुम्हे तो इश्क बेपनाह हो गया|
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सर्दियां
तो अभी शुरू होंगी लेकिन
तेरी
यादो का कोहरा तो सालो से है...
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हमेशा
ख़ामोशी ठीक नहीं है,
शोर
भी कभी कभी सुकून देता है...
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मैं
भी यही हूँ तू भी यही है,
किरदार
कुछ नए पर कहानी वही है,
कि
होके भी यहाँ तू मेरी नहीं है...
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क्या
मुकाबला करेंगे उस मजनूं या रांझा का,
हमे
तो प्यार में एक थप्पड़ भी नसीब नहीं हुआ...
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झुकी
नजरो से ही सही, बस जरा देख ले उन्हें
तो होता है हंगामा,
तो होता है हंगामा,
और
वो नाज़नीं अपने हुस्न से
लाखो क़त्ल करके भी गुमनाम है...
लाखो क़त्ल करके भी गुमनाम है...
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आखिर
क्यों मैं बात करूँ?
करूँ
भी तो किससे करूँ?
कोई
मिला भी तो क्या करूँ?
क्या
करूँ वो तो पता है...बात तेरी ही होगी...
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