Sunday 1 February 2015

चाहत...

न रांझा न मजनूं का हार चाहिए,

मुझे तो अपने हिस्से का प्यार चाहिए|

माकूल नहीं ये तन्हाई की घड़िया,
इस जीवन को तेरा श्रृंगार चाहिए|

ताउम्र जिसे सुनता रहूँ वो,
तेरी पायल की, मादक झंकार चाहिए

ये कमबख्त दिल है जो मानता नहीं,
झूठा ही, इसको तो बस इकरार चाहिए|

जायज़ तेरी मौजूदगी होगी,
न की मुझे तेरा इंतजार चाहिए|

आखों की नमी भी कुछ कह रही है,
इक पल को तेरा दीदार चाहिए|

डूबा हूँ तेरे प्यार के समन्दर में,  
न निकाल, मुझे तो ये मझधार चाहिए|

जुर्म तो मैंने भी किया ये मोहब्बत का,
इस कैद में अब तू भी गिरफ्तार चाहिए|

भीगुँगा मै भी बारिश में इक दिन,
कभी बरस तो, मुझे तेरे प्यार की बौछार चाहिए|

होगा गुमाँ तुझे अपना बनाने का,
तेरा भी मुझ पर ऐतबार चाहिए|

साथ न छूटेगा ये वादा रहा
पर तू भी मुझसी बेकरार चाहिए|

न कोई और, न कोई और, न कोई और,
तू ही तू, तू ही तू बस तू ही तू, हर बार चाहिए|