Saturday 21 November 2015

शायरी २ ...

गम ये हैं की तुझसे मिलना ही क्यों हुआ
ख़ुशी इस बात की है कि तुझसे मिलना हुआ...

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तेरी यादो का मयखाने से रिश्ता कुछ समझ नहीं आता
दिन तो जैसे तैसे गुज़र जाते हैं
शाम होते ही दोनों नज़र आते हैं...

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ये सर्द कोहरा तो चला जाएगा
सीने की धुंध कब मिटेगी
कब सामने आएगी तू...

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हादसों की आदत नहीं है मुझे
एक तुझसे मिलना हुआ फिर कभी उभर ही नहीं पाए

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पूछा किसी ने क्यों जुदा हो दुनिया से
नादां दिल धड़का एक तेरे नाम से
खामोश लब समझदार थे लेकिन, कहा 
अच्छी मेरी गुमनामी, न की होने तेरे बदनाम से...

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शराब होती तो शायद संभल जाते
पर अब तक लड़खड़ा रहे हैं, ये जो नशा तेरा हुआ...

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तेरी यादो के समंदर में तैरते जा रहा हूँ
साहिलों की तलाश से बेपरवाही कर ली जो मैंने...

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तुझसे मिलना हुआ तो शायर हुए
वरना नाकामी किसे पसंद हैं...

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कागज़ की कश्ती थी फिर भी बैठ गए उसपे
किसी ने कह जो दिया था कि उस पार तू खड़ी हैं...
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Wednesday 18 November 2015

शायरी...

तेरे प्यार के दलदल में फसता जा रहा हूँ,
न कोई बचाने वाला है,
ना ही मैं बचाने के लिए आवाज़ लगा रहा हूँ |

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जो तुम सामने नहीं हो तो लगता है
आँखे कुछ बेरोजगार सी है|

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न कर सावन का इंतज़ार...
भीगाकर ये सुखा ख़त्म कर दे,
मुझे अपनी मोहब्बत से तरबतर कर दे,
आ, और मेरे इस मकान को अब घर कर दे...

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अपनी दोस्ती ही अच्छी थी पर
मुझे तुमसे मोहब्बत है,
ये तुम जान गयी और फिर मेरी जान गयी|
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मोहब्बत न हुई गुनाह हो गया,
करके तुमसे मैं तबाह हो गया,
कोशिशे लाख की संभलने की,
पर देखा तुम्हे तो इश्क बेपनाह हो गया|

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सर्दियां तो अभी शुरू होंगी लेकिन
तेरी यादो का कोहरा तो सालो से है...

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हमेशा ख़ामोशी ठीक नहीं है,
शोर भी कभी कभी सुकून देता है...

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मैं भी यही हूँ तू भी यही है,
किरदार कुछ नए पर कहानी वही है,
कि होके भी यहाँ तू मेरी नहीं है...

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क्या मुकाबला करेंगे उस मजनूं या रांझा का,
हमे तो प्यार में एक थप्पड़ भी नसीब नहीं हुआ...

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झुकी नजरो से ही सही, बस जरा देख ले उन्हें
तो होता है हंगामा,
और वो नाज़नीं अपने हुस्न से 
लाखो क़त्ल करके भी गुमनाम है...

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आखिर क्यों मैं बात करूँ?
करूँ भी तो किससे करूँ?
कोई मिला भी तो क्या करूँ?
क्या करूँ वो तो पता है...बात तेरी ही होगी...
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Thursday 8 October 2015

आशा...

बन जा वो किताब, जिसको पढ़ सकूँ
बन जा एक ख्वाब, जिसको देख लूँ

बन जा एक नदी, कि तुझमे तैर लूँ
बन जा वो सदी, जो अमर मै करूँ

बन जा वो सहर, जो रौशनी दे मुझे
बन जा लहर, जिसे महसूस कर सकूँ

बन जा मेरा जीवन, ज़रा सा जी लूँ जिसे 
बन जा घटा-सावन, मै भी भीग लूँ

बन जा कोई गीत, मै गुनगुना सकूँ
बन जा मेरी मीत, कुछ गम भुना सकूँ

बन जा वो चाँद, जिसका दाग मै बनूँ
बन जा मेरा उन्मांद, जिससे जाग न सकूँ

बन जा कोई राह, जिस पर चल सकूँ
बन जा मेरी पनाह, फिर न जल सकूँ

बन जा वो आवाज़, जिसको सुनता रहूँ
बन जा अलफ़ाज़, तो मै लिखता रहूँ


Monday 13 July 2015

कोशिश...

एक कोशिश और हुई
एहसास तुम्हे बताने की
शिद्दत कभी कम न हुई थी 
पर हिम्मत न हुई जताने की

कुछ साँसों को अन्दर खींचा
छेड़ी जो बात दिल की तुमसे
जुबां कुछ लड़खड़ा रही थी
जगह भी न थी धडकनों को समाने की

वो कानो से दिल में उतरी फिर
आवाज़ तेरी, एक आग बुझी अल्फाजों से  
सोचा बस रुक जाये ये वक़्त यही
जिस पल ख़त्म किश्त हुई, वीराने की

चाहा तुम्हे दिल के आखिरी छोर से
पर तुम बने किस्मत किसी और के
खुश तो फिर भी हूँ तेरी ख़ुशी से
बात कुछ और ही होती तुम्हे अपना बनाने की

एक तेरी ‘हां’ न हुई
एक मैंने ‘ना’ न कहा
एक तेरी जरुरत है शायद
दिल को दिमाग को, बस तेरी, न ज़माने की

समझाना चाहा समझा न सका
या तू न समझी या मै न समझा
मोहब्बत मेरी मजबूरी तेरी
एक कोशिश फिर होगी समझाने की...



Saturday 16 May 2015

एक वक़्त...

एक वक़्त तुझे पाने में गया,
एक वक़्त तुझे भुलाने में गया,
एक वक़्त तू साथ थी मेरे,
एक वक़्त वीराने में गया|

एक वक़्त कभी हंसाते थे तुझे,
एक वक़्त तरस खुद मुस्कुराने को गया,
एक वक़्त नशा तेरा था मुझे,
एक वक़्त महफ़िल-ए-मयखाने में गया|

एक वक़्त तेरी बाते सुनते थे बहुत,
एक वक़्त सन्नाटे में गया,
एक वक़्त तेरी बाते औरो से करते थे,
एक वक़्त खुद को सबसे छुपाने में गया|

एक वक़्त थी सब खबर मुझे,
एक वक़्त खो ज़माने में गया,
एक वक़्त ख्वाबो में थी तू,
एक वक़्त यादो के सताने में गया|

एक वक़्त थी तन से रूह तक,
एक वक़्त दिल दिमाग से लड़ जाने में गया,
एक वक़्त थी मोहब्बत तुझसे,
एक वक़्त खुद को आजमाने में गया|

एक वक़्त यकीन कि तू आएगी,
एक वक़्त लौट जाने में गया,
एक वक़्त इबादत थी तू, और
एक वक़्त मुल्हिद कहलाने में गया|


Sunday 1 February 2015

चाहत...

न रांझा न मजनूं का हार चाहिए,

मुझे तो अपने हिस्से का प्यार चाहिए|

माकूल नहीं ये तन्हाई की घड़िया,
इस जीवन को तेरा श्रृंगार चाहिए|

ताउम्र जिसे सुनता रहूँ वो,
तेरी पायल की, मादक झंकार चाहिए

ये कमबख्त दिल है जो मानता नहीं,
झूठा ही, इसको तो बस इकरार चाहिए|

जायज़ तेरी मौजूदगी होगी,
न की मुझे तेरा इंतजार चाहिए|

आखों की नमी भी कुछ कह रही है,
इक पल को तेरा दीदार चाहिए|

डूबा हूँ तेरे प्यार के समन्दर में,  
न निकाल, मुझे तो ये मझधार चाहिए|

जुर्म तो मैंने भी किया ये मोहब्बत का,
इस कैद में अब तू भी गिरफ्तार चाहिए|

भीगुँगा मै भी बारिश में इक दिन,
कभी बरस तो, मुझे तेरे प्यार की बौछार चाहिए|

होगा गुमाँ तुझे अपना बनाने का,
तेरा भी मुझ पर ऐतबार चाहिए|

साथ न छूटेगा ये वादा रहा
पर तू भी मुझसी बेकरार चाहिए|

न कोई और, न कोई और, न कोई और,
तू ही तू, तू ही तू बस तू ही तू, हर बार चाहिए|


Friday 30 January 2015

जरा सुनिए...

एक नयी शुरुआत चाहता हूँ
मैं तुमसे कुछ करना बात चाहता हूँ

जो बस जाए तुम्हारे ज़ेहन में भी
वो एक करना मुलाकात चाहता हूँ

हूँ सही या गलत मैं
बुरा ही, पर एक अंजाम चाहता हूँ

नाज़ुक डोर सा ही सही, रिश्ता तो हो
तुमसे वो हर एक जज़्बात चाहता हूँ

कट जाए ये जिंदगी आपकी याद में
इक हँसी का आघात चाहता हूँ

हो जरुरत और याद करो तुम
एक पल को ऐसे हालात चाहता हूँ

न बदलेगी मेरी ये फितरत
गुस्ताखी माफ़ चाहता हूँ

जो बस जाए तुम्हारे जेहन में भी
वो करना एक  मुलाकात चाहता हूँ


मेरी कहानी...

उस दिन उनका चेहरा देखा न होता,
तो ये हालत न होती,
इस खुशनुमा जिंदगी में,
दिल की बगावत न होती ।

उनकी हसीं मुस्कराहट को,
 हम प्यार समझ बैठे,
जज़्बातों के आगोश में,
खुद ही को भुला बैठे,

अगर थाम लेते
अपने दिल को वक़्त से पहले,
जुल्मी दुनिया से फिर हमें
कभी शिकायत न होती ।

वो तो मगरूर रहे
अपने हुस्न के दरिया में,
देखते इस इस सूखे समंदर को,
 तो उन्हें किसी और से मोहब्बत न होती ।

ओढ़ कर बेवफाई का लिबास
अब पूछते है कौन हो आप,
लगाते हम अपने दर्द-ऐ-आशिकी का इलज़ाम,
 तो उनसे वकालत न होती ।

इस खुशनुमा जिंदगी में,
 दिल की बगावत न होती ।