Sunday 7 August 2016

शायरी ३

तेरी खूबसूरती की तारीफ क्या करूँ
के बस इतना कहना हैं,
जब भी तुम्हे देखता हूँ मुझे फिर से प्यार हो जाता हैं...
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होने से तेरे थी सूखे पत्तो में भी महक
आज गुलाब में सिर्फ कांटे ही दिखते हैं...
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कुछ पल तो भीग लूं बारिश में
आंसुओ में भीगते तो अरसा हो गया
तुम तो कभी ख्वाबो में भी न मिले हमसे
फिर भी मशहूर मेरे इश्क का चर्चा हो गया...
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हम तो देवदास बन ही चुके हैं
अब तू पारो बन जा वर्ना
भाग चंद्रमुखी के खुल जायेंगे...
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तुमसे चाहत थी या खुद से फरेब था
अब हम उजालो को छोड़कर अंधेरो से गुफ्तगू करते हैं...
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बात करके जैसे कोई एहसान करते हो
अगर करते भी हो तो रोज़ कर दिया करो...
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हर तरफ असहिष्णुता की बात हो रही है
तो फिर तेरी यादे मेरे लिए क्या है...
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हम भी शायद अजनबी होते
गर होते तो फिर मतलबी होते...
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जो खुदा लिख भी देता अगर तुझे
मेरी इन हाथो की लकीरों में अगर,
मुमकिन हैं माज़ूर-ए-तासीर कुछ हमारी होती...
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ख्वाहिशे बेकाबू हैं, चेहरे पर चमक कुछ बढ़ सी गयी हैं,
ये दर्द-ए-सैलाब के पहले की ख़ुशी तो नहीं
मोहब्बत तो पहले भी हुई थी, लेकिन इस बार कशिश कुछ ज्यादा हैं,
कहीं तू हद्द से भी ज्यादा खुबसूरत तो नहीं...
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