Thursday 8 October 2015

आशा...

बन जा वो किताब, जिसको पढ़ सकूँ
बन जा एक ख्वाब, जिसको देख लूँ

बन जा एक नदी, कि तुझमे तैर लूँ
बन जा वो सदी, जो अमर मै करूँ

बन जा वो सहर, जो रौशनी दे मुझे
बन जा लहर, जिसे महसूस कर सकूँ

बन जा मेरा जीवन, ज़रा सा जी लूँ जिसे 
बन जा घटा-सावन, मै भी भीग लूँ

बन जा कोई गीत, मै गुनगुना सकूँ
बन जा मेरी मीत, कुछ गम भुना सकूँ

बन जा वो चाँद, जिसका दाग मै बनूँ
बन जा मेरा उन्मांद, जिससे जाग न सकूँ

बन जा कोई राह, जिस पर चल सकूँ
बन जा मेरी पनाह, फिर न जल सकूँ

बन जा वो आवाज़, जिसको सुनता रहूँ
बन जा अलफ़ाज़, तो मै लिखता रहूँ